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वैशाखी का त्यौहार कब और क्यों मनाया जाता है

Vaisakhi Festival in Hindi : वैशाखी को अलग-अलग रूपों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, जैसे बैसाखी, रोहिणी, नव संवत्सर और विषु आदि। यह त्योहार फसल की कटाई के बाद मनाया जाता है और इस मौके पर लोग नए कपड़े पहनते हैं, गीत गाते हैं और नाचते हैं। इस दिन बाजारों में खाद्य पदार्थों की खरीदारी भी की जाती है। यह त्योहार दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में पहेली मेला के नाम से भी जाना जाता है।

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वैशाखी का त्यौहार / Vaisakhi Festival in Hindi

वैशाखी एक हिंदू त्यौहार होता है जो भारत के वैशाख महीने (अप्रैल-मई) में प्रतिवर्ष 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है। जो पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।

वैशाखी का महत्व सिख समुदाय के लिए भी होता है, जहां यह त्योहार खासकर सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव होता है जो सिखों के प्रतिष्ठान के रूप में मनाया जाता है।

वैशाखी के अवसर पर लोग परम्परागत रूप से नाच-गाने करते हैं, परेड निकालते हैं और प्रसाद वंटने का कार्यक्रम भी रखते हैं। साथ ही इस त्यौहार पर लोग बैंकिंग सेवाओं की शुरुआत करने, नए साल की शुरुआत करने, कृषि सम्बन्धित महत्वपूर्ण फसलों की फसल उत्पादन की शुरुआत करने आदि कार्यों को भी शुरू करते हैं।

यह त्यौहार सिखों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस दिन उनके प्रथम गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस दिन सिख समुदाय ने पंज प्यारे की स्थापना की थी जो सिख समुदाय के एक प्रतीक हैं।

बैसाखी क्यों मनाई जाती है?

बैसाखी को भारत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहार है। इसे सिख समुदाय में खास रूप से मनाया जाता है। बैसाखी को मनाने के पीछे कई कारण हैं। सबसे प्रमुख कारण है कि इस दिन सभी अनाज फसलें पूरी तरह से पक चुकी होती हैं और नई फसल की खेती का आरंभ होता है। इस दिन किसानों को अपनी नई फसल का आशीर्वाद भी मिलता है।

दूसरा कारण है कि बैसाखी दिन को सभी धर्मों के लोग एक साथ मिलकर मनाते हैं। सिखों के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस दिन उनके प्रथम गुरु गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की थी।

इसके अलावा बैसाखी के दिन लोग अपने घरों को सजाते हैं और नए कपड़े पहनते हैं। इस दिन पर परंपरागत नाच-गाने और मेले का भी आयोजन किया जाता है।

उत्तराखंड में वैशाखी का त्यौहार

वैशाखी का त्योहार उत्तराखंड में भी मनाया जाता है। यह उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार हिमालयी इलाकों में फसल काटने के बाद नई फसल की शुरुआत के अवसर के रूप में मनाया जाता है। इसके साथ ही वैशाखी के दिन उत्तराखंड में मनाया जाने वाला फूलदेई पर्व का भी समापन होता है।

फूलदेई का पर्व उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध लोक पर्व है। जो की बच्चों द्वारा बहुत धूम धाम से मनाया जाता है, जिस कारण से लोक बाल पर्व भी कहते हैं। फूलदेई  का यह पर्व चैैत्र मास यानि की मार्च 14 या 15 तारीख को मनाया जाता है। जिसमे छोटे बच्चों के द्वारा घरों की देहली में फुल डाले जाते है और इसका समापन वैशाखी के दिन यदि की एक महीने बाद अप्रैल में वैशाखी के दिन होता है (Vaisakhi Festival in Hindi)

वैशाखी के दिन छोटे लोगो के घरों में जाते है तो लोगो के द्वारा उन्हें प्रसाद दिया जाता है साथ ही दक्षिणा भी दी जाती है। उत्तराखंड में वैशाखी के दौरान परंपरागत रूप से नाच-गाने, मेले, परेड आदि का आयोजन किया जाता है। इस दिन लोग परंपरागत भोजन बनाते हैं, यह त्योहार उत्तराखंड की स्थानीय संस्कृति और ट्रेडिशन को दर्शाता है और लोगों को एक-दूसरे के साथ मिलजुलकर मनाने का अवसर देता है।

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