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कानो जिगोरो : जिन्होंने किया इस लड़ाकू खेल, मार्शल आर्ट का अविष्कार

Kanō Jigorō Hindi- गूगल ने आज के दिन कानो जिगोरो को सम्मानित करने के लिए उनका गूगल डूडल लगाया है, गूगल ने कानो जिगोरो की 161वें जन्मदिन के अवसर पर उन्हें गूगल डूडल के द्वारा सम्मानित किया है।

कानो जिगोरो

कानो जिगोरो एक जापानी शिक्षक, एक एथलीट और जापानी लड़ाकू खेल और मार्शल आर्ट जुडो के अविष्कारक थे 1882 में कानो जिगोरो के द्वारा ही जुडो खेल को बनाया गया था, इनके द्वारा विकसित किया गया जुडो ही अंतराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करने वाला पहला मार्शल आर्ट था इसके आलावा यह पहला मार्शल आर्ट था जिसे 1960 में ओलम्पिक खेलो में भी अधिकारिक मान्यता मिली थी।

जूडो नाम का अर्थ है “सौम्य तरीका” जो की खेल न्याय, शिष्टाचार, सुरक्षा जैसे सिद्धांतों पर बनाया गया है।

कानो जिगोरो का जीवन परिचय

कानो जिगोरो का जन्म 28 अक्टूबर 1860 को मिकेज जो की अब कोबे का हिस्सा है में एक जापानी परिवार में हुआ था, जब यह 11 साल के थे तो यह अपने पिता के साथ टोक्यो चले गए।

दादा मध्य जापान के शिगा शासित प्रान्त में शराब निर्माता का व्यापार किया करते थे, लेकिन इन्हें यह व्यापार विरासत के तौर पर नहीं मिल सका क्योंकि इनके पिता इनके दादा के सबसे बड़े बेटे नहीं थे।

कानो कमजोर थे जिस कारण दुसरे बच्चो के द्वारा इन्हें अधिकतर परेशान किया जाता था,  और इसके चलते ही उन्होंने आत्मरक्षा के लिए जुजुत्सु की मार्शल आर्ट सिखने का निश्चय किया।

कानो जिगोरो जब टोक्यो विश्वविद्यालय में पढाई कर रहे थे तो, इसी दौरान उन्हें फुकुदा हाचिनोसु के बारे में पता चला, जो पूर्व समुराई और जुजुत्सु मास्टर थे, यह फुकुदा हाचिनोसु से मार्शल आर्ट की शिक्षा लेने लगे, फुकुदा हाचिनोसु तेनजिन शिन’यो-रियु  के गुरु और इको फुकुदा के दादा थे, फुकुदा हाचिनोसु ने कानो जिगोरो को जुडो में औपचारिक अभ्यास करने पर जोर दिया।

लगभग 1 साल तक फुकुदा हाचिनोसु के स्कूल में ही इन्होने अभ्यास किया, लेकिन इसी दौरान फुकुदा हाचिनोसु की मृत्यु हो गयी, इसके बाद कानो जिगोरो ने तेनजिन शिन’यो-रियु के स्कूल आइसो मासातोमो में दाखिला लिया जहाँ जुडो के पूर्व व्यवस्थित तरीको पर जोर दिया जाता था, इसके बाद कागो इसमें निपूर्ण हो गए।

अपने प्रिशिक्षण में निपुण होने के बाद वह आइसो मासातोमो में सहायक प्रशिक्षक बन गए उस समय इनकी आयु मात्र 21 वर्ष की थी, इसके बाद कानो को लगा की उन्हें अभी बहुत कुछ सीखना है जिसके चलते वह कितो-रियु में प्रशिक्षण लेने चले गए जहाँ उन्होंने दूसरी शैली को अपना लिया, यहाँ उनके गुरु आईकुबो सुनेतोशी थे।

जुजुत्सु के एक मैच के दौरान कानो ने अपने प्रतिद्वंद्वी को हराने के लिए एक पश्चिमी कुश्ती की चाल का सहारा लिया, कानो ने जुजुत्सु से सबसे खतरनाक तकनीक को हटाया और जुडो का अविष्कार किया जो की न्याय, शिष्टाचार, सुरक्षा जैसे सिद्धांतों पर आधारित था।

टोक्यो में कानो में अपना खुद का एक एक कोडोकन जूडो संस्थान  डोजो (एक मार्शल आर्ट जिम), खोला, यहाँ उन्होंने जुडो के लिए नई नई तकनीको का भी विकास किया, साथ ही 1893 से इन्होने इसमें महिलाओं को भी इस खेल में शामिल किया।

कानो ने आईकुबो स्कूल के नौ छात्रों को प्रशिक्षण देना शुरू किया, 1898 में कानो जिगोरो शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत प्राथमिक शिक्षा निदेशक भी रहे और इस पद पर वह 1901 तक रहे, सन 1900 में कानो जिगोरो ने टोक्यो हायर नॉर्मल स्कूल के अध्यक्ष भी रहे और इस पद पर वह 1920 तक रहे।

1909 से 1938 तक डॉ जिगोरो कानो अन्तराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति के सदस्य भी रहे, अंतराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति में शामिल होने वाले वह पहले एशियाई व्यक्ति थे।

ग्रैंड ऑर्डर ऑफ द राइजिंग सन, फर्स्ट ऑर्डर ऑफ मेरिट और थर्ड इंपीरियल डिग्री इन्हें दिए जाने वाले अधिकारिक सम्मान और उपाधियों से इन्हें सम्मानित किया गया था इंटरनेशनल जूडो फेडरेशन (IJF) हॉल ऑफ फ़ेम के पहले सदस्य के रूप में इन्हें 14 मई 1999 को शामिल किया गया था।

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