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संत गुरु रविदास जीवन परिचय : Sant Guru Ravidas Biography In Hindi, रविदास जयंती

Sant Guru Ravidas Biography In Hindi / संत गुरु रविदास जीवन परिचय, रविदास जयंती : भारत एक संतों की नगरी है जहाँ बहुत से ऐंसे संत हुए जो अपने पीछे मानव के लिए एक महत्वपूर्ण शिक्षा छोड़ गए, और जो मनुष्य इस शिक्षा को अनुसरण कर चला वह अपने जीवन में सफल हुआ. इन्ही संतों में से एक संत गुरु रविदास जी थे जो लोगो को भेदभाव की भावना से दूर ले गए.संत गुरु रविदास जीवन परिचय : Sant Guru Ravidas Biography In Hindi, रविदास जयंती

भारत में प्रतिवर्ष माघ महीने की पूर्णिमा को संत गुरु रविदास जयंती के रूप में नया जाता है इस पर्व को पुरे भारत वर्ष में हिन्दू धर्म के लोगो के द्वारा मनाया जाता है. लोगो को आपस में बिना भेदभाव के साथ प्रेम से रहने की शिक्षा देने वाले और कुरीतियों को समाप्त करने वाले संत गुरु रविदास जी एक महान संत, समाज सुधारक और भगवान पर आस्था रखने वाले एक महान भक्त थे. (Sant Guru Ravidas Biography)

गुरु रविदास जी का जीवन परिचय ( Sant Guru Ravidas Biography In Hindi)

संत गुरु रविदास जी का जन्म सन 1450 को वाराणसी के पास स्थित सिर गोवर्धन में हुआ था. इनके पिता का नाम श्री संतोख दास और माता का नाम श्रीमती कलशा देवी था. इनके पिता सरपंच हुआ करते थे. संत गुरु रविदास जी को रैदास के नाम से भी जाना जाता है. इनके पिता चपल बनाने, सिलने का काम करते थे.

बचपन में शिक्षा प्राप्ति के लिए रविदास जी अपने गुरु पंडित शारदा नदं जी की पाठशाला में जाया करते थे लेकिन कुछ समय बाद लोगो के द्वारा इनका उच्च कुल का ना होने के कराण विरोध करने पर इनकी पाठशाला को बंद करवा दिया गया. लेकिन इसके बाद इनके गुरु पंडित शारदा नन्द जी के द्वारा इन्हें घर पर शिक्षा दी जाने लगी थी, क्योंकि इनके गुरु भी भेदभाव के विरोधी थे.

संत गुरु रविदास जी के बचपन के मित्र जो इनके गुरु के पुत्र थे, और रविदास एक साथ खेल खेला करते थे लेकिन एक दिन जब इनके मित्र खेलने के लिए नहीं आये तो यह उनके घर गए और देखा की इनके मित्र की मृत्यु हो चुकी थी. यह देख इनको आश्चर्य हुआ और वह दुखी भी हुए. वह अपने मित्र के पास गए और अपने मित्र को आवाज दी और कहा मित्र उठो यह सोने का समय नहीं है, मेरे साथ खेलों और इसके तुरंत बाद इनका मित्र उठ गया. इस घटना के बाद सभी लोग आश्चर्य में पड़ गए, और यहीं से इन्हें अपनी अलौकिक शक्तियों का पता चला.

समाज के द्वारा भेदभाव की भावना का इन पर गहरा असर पड़ा था, एक इन्सान के दुसरे इन्सान को देखकर की जाने वाली यह भेदभाव की धारणा के चलते इन्होने भेदभाव पर अपनी कलम की सहायता से लिखकर लोगो में बदलाब लाने की कोशिश की, और लोगो को आपस में भेदभाव ना करने की शिक्षा दी.

इनके बारे में यह भी कहा जाता है की यह कृष्ण भगवान् के परम भक्त मीरा के गुरु थे और इन्ही के द्वारा मीरा को भक्तिमार्ग पर चलने की प्रेरणा मिली. मीराबाई के दादा जी रविदास जी के अनुनायी थे और वह प्रतिदिन उन्हें मिलने जाया करते थे जिस कारण मीराबाई इनकी शिक्षा से प्रभावित हुयी और इन्हें अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया. मीराबाई की रचनाओं में यह भी लिखा गया है की बहुत बार रविदास जी के द्वारा उनकी जान को बचाया गया था.

समाज जाति, धर्म, रंगभेद के आलावा भी बहुत से तरीकों से बंटा हुआ था और इन्ही के आधार पर एक इन्सान दुसरे इन्सान से भेदभाव की भावना रखता था. लेकिन रविदास जी इस प्रकार के सभी कुरीतियों को नहीं मानते थे और वह सभी लोगो को बिना भेदभाव के रहने की शिक्षा दिया करते थे. भेदभाव पर रविदास जी का कहना था की भगवान् के द्वारा इन्सान को एक जैसा ही बनाया गया है, जबकि इंसान के शरीर में बहने वाले खून का रंग भी एक जैसा ही है फिर क्यों इन्सान भेदभाव करता है.

लोगो को शिक्षा देने वाले संत गुरु रविदास जी ने 1540 में 126 की उम्र में अपने प्राण त्याग दिए लेकिन उनके द्वारा दी गयी शिक्षा आज भी जीवित है.

संत गुरु रविदास जी के दोहे

  • मन चंगा तो कठौती में गंगा ( जिसका मन साफ़ होता है उसके ह्रदय में ही भगवान का वास होता है )
  • मन ही पूजा मन ही धूप ,मन ही सेऊँ सहज सरूप। ( इस दोहे की सहायता से रविदास से यह समझाना चाहते थे की यदि हम अपने से मैं और मेरा यह निकाल दे तो तब जो बचता है वही मैं हूँ )
  • जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात, रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात ( इसका अर्थ है की जिस तरह से केले के तने को खोला जाये तो पत्ते के अन्दर पत्ता मिलता है और इसी तरह पूरा ताना ख़त्म हो जाता है, लेकिन अंत में भी कुछ नहीं निकलता ठीक उसी तरह इन्सान भी अपने को जाति, धर्म में बाँट देता है जिससे इन्सान ख़त्म हो जाता है लेकिन यह जाती या धर्म का भेदभाव ख़त्म नहीं होता )

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