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Guru Teg Bahadur Balidan Diwas In Hindi

Guru Teg Bahadur Balidan Diwas In Hindi : सिख समुदाय के नौवें गुरु श्री तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों के धार्मिक अधिकार की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया था और वह पहली मिसाल थे जिन्होंने दुसरे धर्म के लिए अपना बलिदान दिया.

Guru Teg Bahadur Balidan Diwas In Hindi

Guru Teg Bahadur Balidan Diwas In Hindi

दुसरे धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान देने वाले गुरु तेग बहादुर का जन्म 18 अप्रैल 1621 को अमृतसर में सिखों के छठे गुरु श्री हरगोविन्द साहिब और माता नानकी की घर में हुआ था. इनका बचपन का नाम त्याग मल था.

1634 में कतारपुर युद्ध में इन्होने अपनी बहादुरी का परिचय दिया था जबकि इस समय ये मात्र 13 वर्ष के थे. युद्ध में बहादुरी का परिचय देने के कारण इनके पिता ने इनका नाम त्याग मल से तेग बहादुर रख लिया था. इन्होने 21 वर्ष की कठोर साधना करने के बाद 1665 में गुरु की गद्धी पर विराजमान हुए.

1675 में इनके दरवार में कश्मीरी पंडितों का दल आया और उन्होंने औरंगजेब के द्वारा जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाने की समस्या को प्रस्तुत किया. गुरु तेगबहादुर को इस समस्या का कोई हल नहीं सूझ रहा था और वह इस पर विचार कर रहे थे की तभी उनके पुत्र गुरु गोविन्द सिंह ने उनकी चिंता का कारण पूछा तो समस्या का पता चलने पर गुरु गोविन्द सिंह ने कहा की इसका इकमात्र उपाय है की किसी महापुरुष को अत्यचार को सहते हुए अपने प्राण त्यागने होंगे और वह महापुरुष कोई और नहीं आप हो.

गुरु तेगबहादुर ने कश्मीरी पंडितों को औरंगजेब के पास जाने के लिए कहा और उसे यह संदेश देने को कहा की यदि तुम गुरु तेग बहादुर से इस्लाम धर्म काबुल करवा देते हो तो हम सभी भी इस्लाम धर्म काबुल करेंगे लेकिन यदि ऐंसा नहीं हो पाया तो हमें भी इस्लाम धर्म कबूलने के लिए नहीं कहोगे.

कश्मीरी पंडितों की इस बात पर औरंगजेब ने अपने सैनिकों को गुरु तेग बहादुर को बंदी बनाकर लाने का आदेश दिया और और गुरु तेग बहादुर को भी इस्लाम धर्म कबूलने को कहा इस पर गुरु तेगबहादुर ने कहा की मै धर्म परिवर्तन के खिलाप हूँ, और इस्लाम भी यह नहीं कहता की तुम जबरदस्ती धर्म काबुल करवा सकते हो.

औरंगजेब की बहुत सी कोशिशों के बाद भी गुरु तेगबहादुर अपने मार्ग ने जरा भी बिचलित नहीं हुए. औरंगजेब के द्वारा गुरु तेग बहादुर को 8 दिनों तक यातनाएं देने के बाद 24 नवम्बर 1675 को दिल्ली स्थित चांदनी चौक में उनका सिर कटवा दिया गया और गुरु तेग बहादुर दुसरे धर्म के लिए शहीद होने की पहली मिसाल बने. इसके बाद उनके भाइयों के द्वारा उनके घर में उनका देह संस्कार किया गया. इस जगह पर गुरुद्वारा शीश गंज साहिब और रकाब गंज साहिब स्थित है जो आज भी गुरु तेग बहादुर की कुर्बानी को याद दिलाते है.

गुरु तेगबहादुर का कश्मीरी पंडितों के धार्मिक अधिकार की रक्षा के लिए दिए गए इस बलिदान को 24 नवम्बर को गुरु तेग बहादुर बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है. गुरु तेगबहादुर के बाद सिखों के 10 वें गुरु के रूप में गुरु गोविन्द सिंह को गद्दी पर बैठाया गया.

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