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भारतीय शिक्षा प्रणाली – एजुकेशन सिस्टम इन इंडिया In Hindi

भारतीय शिक्षा प्रणाली – एजुकेशन सिस्टम इन इंडिया : किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए शिक्षा प्रणाली का मजबूत होना अति आवश्यक है. देश का विकास उसकी शिक्षा प्रणाली पर ही निर्भर होता है क्योंकि देश के विकास के लिए देश का प्रत्येक नागरिक जिम्मेदार है और वो ही अपने ज्ञान, संस्कार, शिक्षा के आधार पर देश को एक शीर्ष स्थान दिला सकता है.एजुकेशन सिस्टम इन इंडिया
यदि शिक्षा प्रणाली में दोष पाए जाते है तो यह देश को अंधकार की ओर ले जाता है. शिक्षा में उन सभी पहलुओं को शामिल करना जरूरी होता है जो किसी भी बच्चे के शारीरिक, मानसिक विकास के लिए भी जरूरी हो और इनके बिना किसी भी प्रकार की शिक्षा का होना बेकार ही है.

भारतीय शिक्षा प्रणाली – एजुकेशन सिस्टम इन इंडिया In Hindi

एजुकेशन सिस्टम इन इंडिया की नीव सन 1835 में लार्ड मैकाले के द्वारा रखी गई थी. वर्त्तमान समय में उपयोग में लाये जाने वाली इंडियन एजुकेशन सिस्टम बिट्रिश शिक्षा प्रणाली का ही प्रतिरूप है. इंडियन एजुकेशन सिस्टम विश्व की सबसे बड़ी शिक्षा प्रणाली है जिसके अंतर्गत लाखों की संख्या में विद्यालय आते है.

वर्त्तमान शिक्षा प्रणाली का महत्व

भारत के अब तक के विकास को देख कर तो यह लगता है की देश की शिक्षा प्रणाली कितने आगे निकल पड़ी है. शिक्षा वह यंत्र है जो किसी के जीवन को आगे बढ़ने किसी का जीवन बनाने और किसी को भी सफलता दिलाने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है.शिक्षा सभी के जीवन में एक महान भूमिका निभाती है क्योंकि वह मनुष्य के जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालती है.

शिक्षा किसी भी व्यक्ति के जीवन में आगे बढ़ने के लिए रूचि पैदा करती है. शिक्षा केवल स्कुल जाने से ही नहीं मिलती यह हमें टीवी न्यूज़ पेपर, हमारे आप पास के वातवरण से भी हमें मिल सकती है. सरकार शिक्षा को बढावा देने के लिए बहुत से अभियान चला रही है. शिक्षा केवल किताबे पढना नहीं है बल्कि समानता, व्यवहार, संस्कृति आदि में भी अच्छा प्रदर्शन करना भी शिक्षा के अधीन है.

वर्तमान शिक्षा प्रणाली का महत्व केवल इतना रह गया है की हर कोई शिक्षा केवल इसलिए पाना चाहता है की वह एक सरकारी नौकरी पा सके इसलिए सभी प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद कॉलेज आदि में जाते है और इसके बाद कुछ ना कर पाने से केवल फॉर्म भरते रह जाते है.

भारत की शिक्षा प्रणाली के दोष

इंडियन एजुकेशन सिस्टम का सबसे बड़ा दोष यह है की देश में हर जगह पर शिक्षा देने वाले संस्थान और विश्वविद्यालय की संख्या काफी अधिक हो गई है शिक्षा देना कोई गन्दा काम नहीं है लेकिन यदि शिक्षा के नाम पर व्यापार किया जाये तो फिर शिक्षा का कोई मतलब ही नहीं रह जाता है.

देश में कई संस्थान ऐंसे है जो शिक्षा के साथ साथ छात्रों का भविष्य बनाने में जोर देते है और किसी भी हालत में वो छात्रों का भविष्य बनाते है लेकिन कुछ ऐंसे भी संस्थान है जो शिक्षा के नाम पर केवल पैसे को आधार बना कर छात्रों में प्रमाण पत्र बाँट देते है तो अब आप बताये क्या कोई इस तरह से देश का विकास कर सकता है.

शिक्षा का अर्थ केवल किताबी ज्ञान से ही नहीं होता शिक्षा के अंतर्गत ज्ञान के साथ साथ किसी व्यक्ति के संस्कार आचरण का का होना भी आवश्यक है इनके बिना शिक्षा का होना ना के बराबर है. भारतीय शिक्षा प्रणाली में बहुत दोष होने के कारण ही देश में बेरोजगारों की संख्या में प्रतिदिन बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है.

शिक्षा प्रणाली का सबसे बड़ा दोष यह है की यह किसी भी व्यक्ति को नौकरी पाने के लिए शिक्षित तो कर सकती है लेकिन यह किसी व्यक्ति को नौकरी देने लायक नहीं बना सकती है. हर कोई केवल यह देखता है की क्या वह पढ़ा लिखा है या नहीं. जिस कारण पढ़े लिखे होने के वावजूद भी लोग कुछ कर नहीं पाते और जो करना चाहते है उनके पास शिक्षा के प्रमाण प्रत्र नहीं होते.

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009

भारत वर्ष में 2010 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 को लागु किया गया था जो यह कहता है की 6 वर्ष से लेकर 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को लिए शिक्षा निशुल्क और अनिवार्य देने का अधिकार प्रदान किया जाये. इसके आलावा भी इस अधिनियम में बहुत सी नियमो को वर्णन किया गया है –

  1. बच्चों के निवास स्थान से एक किलोमीटर के अन्दर प्राथमिक विद्यालय और तीन किलोमीटर के अन्दर माध्यमिक विद्यालय का होना आवश्यक है.
  2. विद्यालयों में बच्चो को पीटना या कोई मानसिक यातनाएं देना मना है.
  3. बच्चों को फेल या उन्हें स्कूल से 8 वर्षों  तक की शिक्षा पूरी करने तक विद्यालय से नहीं निकाला जा सकता है.
  4. विद्यालय में प्रत्येक 30 बच्चों के लिए एक शिक्षक और एक शिक्षक के लिए एक कमरा होना अनिवार्य है.

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