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चार्ल्स मिशेल de l एपी / Charles Michèle de l’Epée In Hindi

चार्ल्स मिशेल de l एपी / Charles Michèle de l’Epée In Hindi : Google Doodle पर आज के दिन चार्ल्स मिशेल de l एपी को सम्मान दिया गया है. जो उन लोगो के लिए एक मसीहा थे जो सुन नहीं सकते थे और इस कारण उन्हें समाज में बहुत सी कठिन परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ता था.

चार्ल्स मिशेल de l एपी / Charles Michèle de l'Epée In Hindi

Charles Michèle de l’Epée को बेहरों (कान से ना सुनने वाले) का जनक या बेहरों का का पिता भी कहा जाता है क्योंकि इन्होने उन लोगो के लिए सांकेतिक भाषा का निर्माण किया था जो सुन नहीं सकते थे.

Charles Michèle de l’Epée In Hindi : चार्ल्स मिशेल de l एपी

चार्ल्स मिशेल de l एपी /  Charles Michèle de l’Epée का जन्म 24 नवम्बर 1712 को वर्सेल्स फ़्रांस के एक अमीर परिवार में हुआ था क्योंकि इनके पिता फ्रांस के राजा लुईस (XIV) के यहाँ वास्तुकार का काम करते थे. इन्होने अपने जीवन में मानवता के लिए बहुत से कार्यों को करने में अपना योगदान दिया था. चार्ल्स मिशेल डे एल एपी ने कैथलिक पुजारी की पढाई भी की थी लेकिन इनकी रूचि इसमें नहीं थी.

चार्ल्स मिशेल de l एपी / Charles Michèle de l'Epée In Hindi
चार्ल्स मिशेल de l एपी को सांकेतिक वर्णमाला का जनक माना जाता है जो बहरे लोगो के लिए बहुत काम की साबित हुई. इसलिए Charles Michèle de l’Epée को बेहरों के पिता के नाम से भी जाना जाता है. जिन्होंने अपना सारा जीवन बहरे लोगो के जीवन को बनाने में लगा दिया.

चार्ल्स मिशेल de l एपी ने ही विश्व का पहला स्कूल की भी स्थापना की थी जो बेहरे लोगो के लिए बनाई गयी थी. Charles Michèle de l’Epée ने दानशील कार्यो को करने में भी अपना योगदान दिया जिसमे ये गरीब लोगो की दानशील कार्यों से मदद किया करते थे. इसी दौरान इन्हें दो बहने मिली जो बेहरी थी लेकिन ये आपस में बातचीत के लिए इशारो की मदद लेती थी और यही से Charles Michèle de l’Epée को बेहरे लोगो के लिए एक सांकेतिक भाषा बनाने के विचार आया.

1760 में Charles Michèle de l’Epée ने एक स्कूल की भी स्थापना की जो बेहरे लोगो के लिए था और यह स्कूल दुनिया का पहला स्कूल था जो बेहरे लोगो के लिए बनाया गया था इन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन बेहरे लोगो के जीवन को बनाने में लगा दिया था.

चार्ल्स मिशेल de l एपी के द्वारा विकसित सांकेतिक भाषा हाथो से इशारे या संकेत के आधार पर बनाई गई भाषा थी. जो बेहरे लोगो के समझाने के एक बहुत अच्छा तरीका था. इसे फ्रांस में चिन्ह भाषा के नाम से जाना जाता है.

Charles Michèle de l’Epée ने रो बेहरो के लिए धर्मिक शिक्षा के साथ साथ क़ानूनी शिक्षा के लिए भी मदद की. इन्होने बेहरों के लिए एक चिन्ह प्रणाली का भी अविष्कार किया जिसे केवल बेहरें लोगो के साथ संपर्क करने के लिए ही नहीं बल्कि यह दो बेहरों का आपसी संपर्क करने के लिए भी बेहतर थी.

चार्ल्स मिशेल de l एपी की मृत्यु 77 वर्ष की आयु में 23 दिसंबर 1789 को पेरिस फ़्रांस में हुई, इनका मकबरा पेरिस के सेंट रोच के चर्च में बनाया गया. इनकी मृत्यु के पश्चात् इसके द्वारा स्थापित इंस्टीट्यूटशन नेशनल डेस सौर्ड्स अ पेरिस को सरकारी सहायता मिलना शरू हुआ और बाद में इसका नाम बदलकर St. Jacques रखा गया लेकिन इसके बाद इसका नाम दुबारा बदला गया और वर्तमान समय में इस स्कूल का नाम Institut National de Jeunes Sourds de Paris है.

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